एक रात महात्मा बुद्ध के समक्ष एक युवती आई ! बिखरे हुए बाल व आंसुओं से तर ब तर चेहरा उसकी मनस्थिति बयान कर रहा था ! उपस्थित होकर कहने लगी " हे महात्मा मेरा इकलौता पुत्र किशोरावस्था में काल का ग्रास बन गया है मैं इस बात से बहुत दुखी हूँ आप तो बुद्ध हैं मेरे पुत्र को पुनर्जीवन प्रदान कर मेरी व्याकुलता शांत करें ! " महात्मा बुद्ध ने युवती की और स्नेह भरी नज़र से देखा और कहा की " हे माता आप कृपया विश्राम करें हम इस विषय में सुबह बात करेंगे !" सुबह युवती ने बिना प्रतीक्षा किये महात्मा बुद्ध के समक्ष उपस्थित होकर अपना आग्रह दोहरा दिया ! इस पर महात्मा बुद्ध ने युवती से कहा की माता आपकी समस्या के समाधान के लिए आवश्यक है की आप गाँव में जाकर कुछ भिक्षा ले आयें ! भिक्षा केवल उसी घर की स्वीकार करें जहाँ आज तक किसी की मौत न हुई हो ! महात्मा बुद्ध की आज्ञा का पालन करते हुए युवती शाम तक ऐसे घर की तलाश करती रही जहाँ किसी की मृत्यु न हुई हो ! जैसे जैसे वह आगे बढती गयी उसकी व्याकुलता शांत होती चली गयी ! वह कभी लौट कर नहीं आई ! अब वह जीवन के मृत्यु रुपी परम सत्य को जान चुकी थी !
ये कहानी बाबा जी (दादा जी) ने 21 साल पहले सुनाई थी जब मैं केवल 10 वर्ष का था ! शायद वे जान चुके थे की 10 वर्ष की छोटी आयु में मुझे इस सत्य से अवगत होना होगा ! आज भी उनका स्मरण आँखों के सामने धुंधला नहीं हुआ है ! गहुआ रंग दरम्याना कद सफ़ेद झाग सी दाढ़ी आँखों से झांकती रूहानियत लम्बा काला चौला (कुर्ता) एक हाथ में छड़ी और दुसरे हाथ में माला, सांसों में संगीत का प्रवाह ! पल पल अध्यात्म की और बढ़ते कदम ! मौन के बावजूद उनकी उपस्थिति परिवार को अनुशासन में बांधे रखती थी ! 1989 में गुरु रामदास जी के प्रकाश उत्सव व दिवाली के उपलक्ष में दरबार साहिब अमृतसर की यात्रा को रवाना हुए तो कोई सोच भी नहीं सकता था की वे अंतिम यात्रा पर जा रहे हैं ! लौटते हुए बुखार ने उन्हें चड़ीगढ़ में रोक लिया ! जहाँ से उन्होंने संसार को अलविदा कह दिया ! गुरुबाणी की वह पंक्तियाँ आज भी भूल नहीं पाया हूँ जिनमे वे कहा करते थे की -
"जिस मरने से जग डरे मेरे मन आनंद, मरने ही ते पाइये पूर्ण परमान्द"
सप्ताह के शुरू होते ही सूचना मिली की वरिष्ठ पत्रकार व इंडियन एक्सप्रेस जम्मू संस्करण के वरिष्ठ उपसंपादक हरीश पन्त जी नहीं रहे ! जिला सिरमौर मुख्यालय नाहन के निवासी पन्त जी का यूँ अचानक जाना पत्रकार जगत के लिए किसी सदमे से कम नहीं रहा ! अभी पन्त जी की विदाई के सदमे से उभर भी नहीं पाए थे की दैनिक भास्कर के स्थानीय पत्रकार शामलाल पुंडीर की माता जयंती देवी के देहांत का समाचार ने सिरमौर का पत्रकार जगत को गमगीन कर गया ! इसके ठीक तीसरे दिन दिव्य हिमाचल के ब्यूरो प्रभारी रमेश पहाड़िया की पिता श्री जातिराम शर्मा जी के देहवासन का समाचार आ पहुंचा ! जिसने सिरमौर के पत्रकार जगत को गहरे सदमे में भेज दिया है ! दिवंगत आत्माओं की शांति व सम्बंधित परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए कबीर जी के दोहे-
"कबीरा जब हम आये जगत में जग हंसा हम रोये,
ऐसी करनी कर चले हम हँसे जग रोये !"
के साथ अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ !