बुधवार, 21 सितंबर 2011

मौत से आलिंगन


एक रात महात्मा बुद्ध के समक्ष एक युवती आई ! बिखरे हुए बाल व आंसुओं से तर ब तर  चेहरा उसकी मनस्थिति बयान कर रहा था ! उपस्थित होकर कहने लगी " हे महात्मा मेरा इकलौता पुत्र किशोरावस्था में काल का ग्रास बन गया है मैं इस बात से बहुत दुखी हूँ आप तो बुद्ध हैं मेरे पुत्र को पुनर्जीवन प्रदान कर मेरी व्याकुलता शांत करें ! "  महात्मा बुद्ध ने युवती की और स्नेह भरी नज़र से देखा और कहा की " हे माता आप कृपया विश्राम करें हम इस विषय में सुबह बात करेंगे !" सुबह युवती ने बिना प्रतीक्षा किये महात्मा बुद्ध के समक्ष उपस्थित होकर अपना आग्रह दोहरा दिया ! इस पर महात्मा बुद्ध ने युवती से कहा की माता आपकी समस्या के समाधान के लिए आवश्यक है की आप गाँव में जाकर कुछ भिक्षा ले आयें ! भिक्षा केवल उसी घर की स्वीकार करें जहाँ आज तक किसी की मौत न हुई हो ! महात्मा बुद्ध की आज्ञा का पालन करते हुए युवती शाम तक ऐसे घर की तलाश करती रही जहाँ किसी की मृत्यु न हुई हो ! जैसे जैसे वह आगे बढती गयी उसकी व्याकुलता शांत होती चली गयी ! वह कभी लौट कर नहीं आई ! अब वह जीवन के मृत्यु रुपी परम सत्य को जान चुकी थी ! 


ये कहानी बाबा जी (दादा जी) ने 21 साल  पहले सुनाई थी जब मैं केवल 10  वर्ष का था ! शायद वे जान चुके थे की 10  वर्ष की छोटी आयु में मुझे इस सत्य से अवगत होना होगा ! आज भी उनका स्मरण आँखों के सामने धुंधला नहीं हुआ है ! गहुआ रंग दरम्याना कद सफ़ेद झाग सी दाढ़ी आँखों से झांकती रूहानियत लम्बा काला चौला (कुर्ता) एक हाथ में छड़ी और दुसरे हाथ में माला, सांसों में संगीत का प्रवाह ! पल पल अध्यात्म की और बढ़ते कदम ! मौन के बावजूद उनकी उपस्थिति परिवार को अनुशासन में बांधे रखती थी ! 1989  में गुरु रामदास जी के प्रकाश उत्सव व दिवाली के उपलक्ष में दरबार साहिब अमृतसर की यात्रा को रवाना हुए तो कोई सोच भी नहीं सकता था की वे अंतिम यात्रा पर जा रहे हैं ! लौटते हुए बुखार ने उन्हें चड़ीगढ़ में रोक लिया ! जहाँ से उन्होंने संसार को अलविदा कह दिया ! गुरुबाणी की वह पंक्तियाँ आज भी भूल नहीं पाया हूँ जिनमे वे कहा करते थे की - 


"जिस मरने से जग डरे मेरे मन आनंद, मरने ही ते पाइये पूर्ण परमान्द" 


सप्ताह के शुरू होते ही सूचना मिली की वरिष्ठ पत्रकार व इंडियन एक्सप्रेस जम्मू संस्करण के वरिष्ठ उपसंपादक हरीश पन्त जी नहीं रहे ! जिला सिरमौर मुख्यालय नाहन के निवासी पन्त जी का यूँ  अचानक जाना पत्रकार जगत के लिए किसी सदमे से कम नहीं रहा ! अभी पन्त जी की विदाई के सदमे से उभर भी नहीं पाए थे की दैनिक भास्कर के स्थानीय पत्रकार शामलाल पुंडीर की माता जयंती देवी के देहांत का समाचार ने सिरमौर का पत्रकार जगत को गमगीन कर गया ! इसके ठीक तीसरे दिन दिव्य हिमाचल के ब्यूरो प्रभारी रमेश पहाड़िया की पिता श्री जातिराम शर्मा जी के देहवासन का समाचार आ पहुंचा ! जिसने सिरमौर के पत्रकार जगत को गहरे सदमे में भेज दिया है ! दिवंगत आत्माओं की शांति व सम्बंधित परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए कबीर जी के दोहे- 


                             "कबीरा जब हम आये जगत में जग हंसा हम रोये, 
                              ऐसी करनी कर चले हम हँसे जग रोये !" 


के साथ अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ !

हे ईश्वर : ये ख्वाब सच न हो !


आज सुबह से ही टीवी के आगे डटा था. निगाहें समाचार चेनलों पर टिकी थी. हो भी क्यूँ ना पूरा देश इसे देख रहा था. कश्मीर के एक विशाल सभागार में पाकिस्तान की खुबसूरत और युवा विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की विशाल सभा को संबोधित करने वाली थी. इस सभा में भारतीय कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के साथ आतंकवादी संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल थे. इस मंथन बैठक में किसी सरकारी प्रतिनिधि को शामिल होने की इज़ाज़त नहीं थी. माना जा रहा था की इस बैठक के बाद कश्मीर के जेहादियों की भावी रणनीति की दिशा दशा में बड़ा परिवर्तन होने वाला है. यही कारण है की केन्द्रीय ख़ुफ़िया एजेंसियों के जासूसों के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के जासूसों के कान भी सभागार की दीवारों से सटे थे. लेकिन हिना रब्बानी अपने खुबसूरत चेहरे पर नूर और मीठी मुस्कराहट लिए आत्मविश्वास से लबरेज़ थी. 


ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा घोषित आतंकी संगठन का एक प्रतिनिधि सभागार अपने ओजस्वी  भाषण के दौरान विश्व में हुई सशस्त्र क्रांतियों के बारे में विस्तार पूर्वक बता रहा था. इस दौरान वह क्रांतिकारियों के नामों के साथ साथ कश्मीरी जेहादियों का जिक्र करने से भी नहीं चुक रहा था. उसका लम्बा व सारगर्भित भाषण सशस्त्र क्रांति और उसकी आवश्यकताओं पर ही केन्द्रित रहा. सभागार में बैठे अधिकतर लोग आतंकी संगठन के इस नेता की बात से सहमत थे और प्रभावित भी. लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियों व देशभर को जिस बात की प्रतीक्षा थी उसका इस बात से कोई लेना देना नहीं था. सभी जानते हैं की  कश्मीर के अलगाववादी नेता प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में आतंकी संगठनो की मदद करते ही रहते हैं. और फिर आज तो भारत सरकार ने उन्हें संयुक्त राष्ट्र के आग्रह पर आत्ममंथन के लिए विशेष छुट दी हुई थी. ख़ुफ़िया एजेंसियों को इसमें भी एक बड़ी साजिश की आशंका सता रही थी. 


आतंकी संगठन के नेता के भाषण के बाद अब जो वक्ता भाषण के लिए आ रहा था. वह शांतिदूत के भेस में आईएसआई का वरिष्ठ पदाधिकारी था. उसकी बातें आतंकी संगठनों के नेताओं के लिए कड़ा आदेश होंगी. उसके खड़े होते ही सभागार में सन्नाटा छा गया. अधेड़ वक्ता ने गला साफ कर बोलना शुरू किया.  उसने अपने भाषण की शुरुवात कश्मीर के इतिहास से करते हुए कश्मीरी जेहादियों के जख्मों को खूब कुरेदा. जैसे जैसे सूचनाएं बहार आ रही थी राजनेताओं, पत्रकारों व बुद्धिजीवियों के खून का दौरा बढ़ता जा रहा था. और सरकार की  देश भर में माहौल बिगड़ने की चिंता बढती जा रही थी. इसी बीच.....................................   समाचार चैनल पर उबाऊ विज्ञापनों ने ध्यान भंग कर दिया. तुरंत चैनल बदल कर दुसरे समाचार चैनलों का रुख देखना चाहा तो सभी का हाल एक जैसा था. समाचार चैनलों की मिलीभगत पर पहली बार इतना गुस्सा आया. बड़ी बैचेनी के साथ 5 मिनट गुज़रे. तब तक आईएसआई अधिकारी का भाषण दिशा बदल चुका था. अब वह विश्व में सशस्त्र क्रांतियों से मानवता को होने वाले नुकसान के बारे में बता रहा था. साथ ही कह रहा था की सशस्त्र क्रांति ने मानवता के नुकसान के इलावा नफरत , घृणा के सिवा कुछ नहीं दिया. यहाँ तक की देर सवेर क्रांतिकारियों को भी इस गलती का एहसास हुआ. उसने ये बात कह कर सभा को सन्न कर दिया की सीमा पार से सहायता पहुँचाने वाली मानवता विरोधी ताकतों पर शिकंजा कसा जाएगा. शायद यह बात कहकर आईएसआई अधिकारी पाकिस्तान को पाक साफ साबित करने की नाकाम कोशिश कर रहा था. वक्ता की बात सुन कर आतंकी नेताओं व अलगाववादी नेताओं की आँखों में आक्रोश साफ नज़र आने लगा. आईएसआई अधिकारी की निगाहों से भी यह नाराज़गी छुपी नहीं रही. उसने स्थिति को भांपते ही तत्काल सुर नरम करते हुए कहा की पाकिस्तान उनका विरोधी नहीं है. बल्कि सच्चा हमदर्द है. और दुःख सुख की हर घडी में उनके साथ है. ये कहकर उपस्थित नेताओं का क्रोध शांत करते हुए अपनी बात समाप्त कर दी. इस सब के बीच हिना रब्बानी निर्विकार भाव से सब कुछ देख रही जैसे की उसे सभा का नतीजा पहले से ही मालूम हो. 


सभा चलते हुए 8 घंटे बीत चुके थे. सस्पेंस बढता ही जा रहा था. की आखिरकार इस बैठक में कुछ नतीजा निकलेगा भी या नहीं. इधर मेरी श्री मति जी कई बार खाने को पूछ चुकी थी. यहाँ तक की कोई जवाब ना मिलने पर और चाय बार बार ठंडी हो जाने पर चीढ़ रही थी. दर्ज़न भर वक्ताओं के लम्बे भाषणों के बाद पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार को अध्यक्षीय भाषण के लिए आमंत्रित किया गया. हिना के मंच पर पहुँचने के पांच मिनट तक सभागार तालियों से गूंजता रहा. तालियों की गूंज ने हिना की लोकप्रियता व सभासदों की उमीदों को जाहिर कर दिया. हिना ने अपनी बात बड़े अदब के साथ शुरू की. भाषण के पहले चरण में उसने लगभग सभी वरिष्ठ प्रतिनिधियों को संबोधित करने की बाद कश्मीरियों और पाकिस्तानियों के रिश्तों की गहराई बता कर उनके दिलों में जगह बनाने की कोशिश की. माहोल को हल्का फुल्का बनाने के बाद उसने कहा की पाकिस्तान अब अन्य सभी बातों को पीछे छोड़ कर विकास की दिशा में आगे बड़ना चाहता है. ऐसे में सीमा पर से हिंसा की किसी गतिविधि को शह नहीं दी जा सकती. उसने कहा की कश्मीरियों को ये बात भी अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए की यह समय सशस्त्र आंदोलनों का नहीं बल्कि अहिंसक आंदोलनों का है. अब कश्मीर की आज़ादी के परवानों को अपने पैरों पर खड़ा होना होगा. और हिंसा का रास्ता छोड़ अहिंसा का रास्ता अपनाना होगा. ये बात सुनते ही सभा में एक बार फिर सन्नाटा छा गया. हिना रब्बानी ने महात्मा गाँधी, का उदाहरण देते हुए बात आगे बढाई. और कहा की महात्मा गाँधी, दक्षिण अफ्रीका के गाँधी नेल्सन मंडेला, म्यांमार की गांधीवादी नेता आन सु की के अहिंसक आन्दोलन ज्वलंत उदाहरण है. भारत में हाल ही में हुए अन्ना हजारे के आमरण अनशन को दुनिया ने टीवी चैनलों पर देखा. क्या यह कश्मीरी क्रांतिकारियों से छुपा है ? कश्मीरियों को अन्ना के दिखाए रास्ते पर चलना होगा. इतना सुनते ही एक बार फिर सभागार तालियों से गूंज उठा. 


तालियों की गूंज के साथ ही घबराकर मेरी नींद खुल गयी. आँख खुलते ही देखा तो चारों और अँधेरा छाया हुआ था. मैं पसीने से तरबतर हो चुका था. घडी में समय देखा तो रात के ढाई बज चुके थे. सिरहाने के पास रखा एक गिलास पानी पिया और सिरहाना ऊँचा कर सिर टीका दिया. 
फिर वही ख्याल आँखों में तैर रहे थे. यदि ऐसा हुआ तो सभी चैनलों व समाचार पत्रों में कश्मीरियों जेहादियों के आमरण अनशन, सत्याग्रह और असहयोग आंदोलनों से भरे होंगे. अंतर्राष्ट्रीय मिडिया उनका खूब समर्थन कर रहा होगा. ऐसे में देश के अल्पसंख्यकों का झुकाव जेहादियों के पक्ष में होने की संभावनाएं बढ़ जाएगी. लाखों अल्पसंख्यक विश्व भर से कश्मीरी जेहादियों के पक्ष में अहिंसक आन्दोलन चलाएँगे, देश में लाखों लोग अन्ना बनकर अनशन पर बैठ जाएँगे. देश एक भयानक गृह युद्ध की आग में झुलस जाएगा. और पाकिस्तान पहली बार भारत के खिलाफ इतनी बढ़ी साजिश में कामयाब हो जाएगा. 


यह सोच कर देश राजनितिक नेत्रत्व पर विश्वास जताते हुए आँखें बंद कर ईश्वर से प्रार्थना करने लगा की "हे ईश्वर, इन्हें गांधीवादी और अन्नावादी रास्तों से दूर रखना. इन्हें कभी सद्बुद्धि प्रदान मत करना. उन्हें असुरी प्रवृति में कायम रखना ताकि वे खुद की लगाई हिंसा की आग में भस्म हो जाएँ". यह सोचते हुए ना जाने कब मेरी आँख लग गयी.      

एक आन्दोलन : मेरे खिलाफ हो !


भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के जोरदार आन्दोलन को देखते हुए मेरा भी खून खोलने लगा है, आमतौर पर जब भी मुझे कोई कुछ समझाने की कोशिश करता है तो मैं तुरंत रक्षात्मक मुद्रा में प्रतिवाद करता हूँ, ऐसा नहीं है की मैं पहले से भ्रष्टाचार विरोधी नहीं हूँ, लेकिन इस बार बात जरा अलग है, भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना का आन्दोलन मुझे भी मैदान में उतरने के लिए मजबूर कर रहा है, कारण टेलीविजन पर नारे लगाते लोग, देश भक्ति के गीतों पर नाचते युवा मुझे भी आंदोलित कर रहे है, डर इस बात का है की मेरा कद और हैसियत अन्ना के के मुकाबले बाल बराबर भी नहीं है, इसलिए मेरे पीछे चलने वालों में मेरी परछाई के इलावा कोई भी नहीं,

                अन्ना महान हैं भ्रष्टाचारियों के लिए फांसी की सजा मांग कर खुद को गांधीवादी कह सकते हैं, मेरी इतनी हिम्मत कहाँ,  सिविल सोसाइटी के सदस्यों को छोड़ कर देश भर के सभी जनप्रतिनिधियों भ्रष्ट कह सकतें हैं, मुझमे इतना नैतिक बल नहीं, ये तो बस अन्ना ही कर सकते हैं, मैं अपने काम से 8 दिन की छुटी भी नहीं ले सकता, यार बल बच्चेदार हूँ, अन्ना इस बारे में तनावरहित हैं, और सच कहूँ तो भूखा रहना मेरे बस की बात नहीं, एकाध दिन का रिस्क ले भी लिया जाए तो सरकार का क्या भरोसा, बाबा रामदेव की तरह न निगलते बनेगा न उगलते, अपमान सहना पड़ेगा सो अलग, इतना पंगा कोन ले, लेकिन देश से भ्रष्टाचार मिटाना है तो क़ुरबानी तो देनी ही पड़ेगी, जब अन्ना अपने साथियों को लेकर जंग में उतर ही गए हैं तो में हाथ पे हाथ धरा बैठा रहूँ ये भी तो ठीक नहीं, और जब लड़ना ही है तो पूरी ईमानदारी से, लेकिन भ्रष्टाचार कोई व्यक्ति तो है नहीं जो मुझसे डर कर सुधर जाएगा,

                तो लडूं किसके खिलाफ, केंद्र सरकार ही ठीक रहेगी, सभी तो उसके खिलाफ लड़ रहे है, भाजपा भी, रामदेव भी, अन्ना भी, तो मैं क्यूँ नहीं, "अबे ओ ओकात में रह कर बात कर तू अन्ना, बाबा रामदेव और भाजपा की बराबरी करने का प्रयास कर रहा है", माफ़ कीजिये ये मैंने आपसे नहीं बल्कि मेरी अंतर आत्मा में मुझसे कहा, कहाँ महान बाबा रामदेव, महान अन्ना, और विपक्ष और कहाँ मै तुच्छ, आन्दोलन ही करना है तो किसी बराबरी वाले के खिलाफ कर, बस ये बात सोच कर थोडा होसला बढ़ा, यही ठीक रहेगा, बराबरी का भ्रष्टाचारी देख कर पंगा ले लिया जाए, कुछ दोस्त और करीबी रिश्तेदार तो हैं जिनके खिलाफ मोर्चा खोला जा सकता है लेकिन बुरे वक्त में काम आते है कही बुरा न मान जाएँ, न भई न, और कोन ऐसा भ्रष्टाचारी हो सकता है जिसके खिलाफ आन्दोलन भी चलाया जा सके और किसी को बुरा भी न लगे, पापा, भाई, पत्नी नहीं बात नहीं बनेगी,

                अरे आप कहीं ये तो नहीं सोचने लगे की में जान बुझ कर बहाने बना रहा हूँ, विश्वास कीजिये मैं गंभीर हूँ, लेकिन कोई बराबरी का भ्रष्ट व्यक्ति भी चाहिए जिसके खिलाफ लड़ा जाए, अब जब भाई और पत्नी वाली बात ही ख़त्म हो गयी बचा सिर्फ मै, लेकिन मै और भ्रष्ट कतई नहीं विश्वास कीजिये मैंने कभी रिश्वत के नाम पर एक रुपया भी नहीं लिया, हाँ छोटे मोटे तोहफे अब रिश्वत तो कहे नहीं जाएँगे, जहाँ तक रिश्वत देने की बात है, वो हो सकता है, यार अब इतने में तो मुझे भ्रष्ट मत कहने लगना, आदमी की मजबूरी भी होती है, शुक्र है कम से कम इसके लिए तो मैंने खुद को माफ़ कर ही दिया, अब रही बात आयकर की बस यहीं थोड़ी गड़बड़ है, कोशिश यही रहती है आयकर शून्य भरा जाए, अगर  कुछ भरने की नोबत आ ही गयी तो यार सीए किसलिय है, जब शुल्क पूरा देता हूँ, कर चोरी के तरीके जानना मेरा हक़ है, हाँ कुछ फर्जी वर्जी दस्तावेज चाहिए तो वो जिम्मेदारी मेरी ही है, घर-कर के तो नाम से ही मुझे नफरत है, नगर परिषद् के लिए मेरे पास सीधा बहाना है आप काम तो कुछ करते नहीं टैक्स लेने आ जाते है, पहले काम कीजिये फिर टैक्स देंगे, हाँ आर्थिक तंगी का बहाना में नहीं सुनूंगा, सेलटैक्स किस बात का काम करें हम टैक्स ले सरकार वो तो भला हो बिचारे अधिकारीयों का जो ले देकर बात सस्ते में निपटा देते है, और लाखों की बात कुछ हजारों में निपट जाती है, सेवा कर का तो मुझे आज तक कोई ओचित्य ही समझ में नहीं आया, दोस्ती के नाते आपको बता रहा हूँ बात अपने तक ही रखियेगा, आज तक नहीं जमा करवाया, घर पर एसी लगवाने की सोच रहा हूँ बिज़ली के बिल की टेंशन में हूँ अब तो आप समझ ही गए होंगे उसका तोड़ निकलना ज्यादा मुश्किल नहीं है, आखिर विज्ञानं ने इतनी तरक्की इसीलिए तो की है की इन्सान उसका लाभ उठा सके, अब देखिये पथकर, भवन निर्माण पर कर, यात्रा पर कर इन सब से मुझे सख्त परहेज़ है, अब अगर सभी टैक्स ईमानदारी से देने लगा तो        नहीं नहीं ये में सोच भी कैसे सकता हूँ,      

                अगर ये सब भ्रष्टाचार है तो सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी तो में ही हूँ, अब तो ये पक्का हुआ पहला आन्दोलन किसी और के खिलाफ नहीं बल्कि मेरे ही खिलाफ होना चाहिए, आज अन्ना के आन्दोलन के बहाने इस बात का विश्वास हो गया की जब तक मै नहीं सुधरूंगा तब तक कोई आन्दोलन सफल नहीं होगा, न ही देश से भ्रष्टाचार ख़त्म होगा, न ही कोई जन लोकपाल भ्रष्टाचार मिटा सकेगा, मैंने खुद के खिलाफ आन्दोलन शुरू कर दिया है, लेकिन नैतिक  बल हासिल करने के लिए मुझे भी अन्नाओं की जरुरत है, हे अन्ना पहले मेरे खिलाफ आन्दोलन करो, विश्वास करो में मै केंद्र की तरह बेईमान नहीं इसमे आपका विरोध करने की बजाए आपका साथ दूंगा !